हाथ कार्यरत और मस्तक स्वाभिमान से उन्नत

कठिन वनवासी जीवन में भी वनवासी महिलाओं का जीवन और भी ज्यादा कठिन होता है। सुविधा विहीन जीवन, परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की भी कमी और उसमें भी अत्याधिक आर्थिक तंगी। सरकार ने कौशल विकास जैसे कार्यक्रम प्रारंभ करके इन्हें आत्मनिर्भर बनाने की पहल तो की है, किंतु गुणवत्तायुक्त उत्पादन और उसका विपणन, दोनों में अभी भी वनवासी बहनें कहीं न कहीं पिछड़ जाती हैं।
राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद् में कई वर्षो तक क्षेत्र में कार्य के अनुभव स्वरुप महिला इकाई ने वनवासी बहनों की मानसिकता, उनका सामथ्र्य और उनकी उत्पादन क्षमताओं का अध्ययन किया और कई असफल प्रयोगों के बाद एक सफल कार्यक्रम संचालित किया। 2015 में स्थापना हुई ‘नम्रता कौशल विकास केन्द्र’ की। उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के गाँव गोरण की 10 बहनों को बुला कर सात दिन का कशीदा प्रशिक्षण दिया और तप्पड़/ज्यूट/बोरी वाले कपड़े पर कशीदा निकालना सिखाया। श्रीमती सरला मून्दड़ा एवं श्रीमती कुसुम जी बोर्दिया द्वारा बनाई गई खूबसूरत डिजाइनें व विविध रंगों के धागों से संयोजित बेग, पर्स, लिफाफे आदि को लोगों ने खूब सराहा और यूं यह कार्य चल निकला। धीरे-धीरे बिक्री बढने लगी तो वनवासी क्षेत्र में काम भी बढ़ने लगा। वर्तमान में दस वनवासी गाँवों की 74 बहनें इस कशीदा आयाम से जुड़ी हैं। गाँव की एक प्रमुख बहन की देखरेख में पूरी टीम काम करती हैं। हर 15 दिन में एक बार दिया हुआ कार्य पूरा करके ले कर आना और नया काम ले कर जाना इस बहन का मुख्य कार्य है जिसके बदले उसको 8 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। उदयपुर कार्यालय में स्थापित केन्द्र पर इन कशीदे किये हुए कच्चे सामान से सुंदर वस्तुओं की सिलाई होती है।

सबसे हट कर बनाई गई डिजाईनें ग्राहकों को खूब लुभाती हैं। विशेष रुप से तैयार की गयी कशीदे की कलात्मक खेल सामग्री ‘नम्रता कौशल विकास केन्द्र’ के ‘‘कमली’’ ब्रान्ड को अलग पहचान प्रदान करती है।

अपनी खेतीबाड़ी का काम करते हुए, घर काम को भी पूरा करते हुए और अपनी पढाई को भी जारी रखते हुए युवतियाँ समय निकाल कर इस काम को करती हैं कि चार पैसे हाथ में आये।

ऐसे ही कशीदा कार्य से पैसा इकट्ठा कर एस.टी.सी. करने के लिये पैसे देने में असमर्थ कमला ने अपनी फीस भरी और कोर्स पूरा कर आज विद्यालय में पढ़ा रही है। इन्द्रा के पिताजी असमय ही छोटे-छोटे बालकों को छोड़ चल बसे, माता बिमार रहने लगी तो इन्द्रा को अपनी पढाई बीच में छोड़ माँ और पिता दोंनो की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। घर छोड़कर बाहर नहीं जा सकती और छोटे से खेत से जरुरतें पूरी नहीं होती। ऐसे में घर में रहते हुए कशीदा कार्य करना प्रारंभ किया तो माँ के इलाज के लिये भी पैसे आ गये और छोट भाई-बहनो की किताब-बस्ते के लिये भी प्रबंध हो गया। शर्मिला अपने छोटे-छोटे बच्चों के लिये दूध खरीदने में भी अक्षम थी। आज इस काम से जुड़ कर खुश है कि बच्चों का लालन-पालन ठीक से कर पा रही है। ऐसे कई कई उदाहरण हैं।

इस कार्य की विशेषता यह है कि केवल महिलाएं ही नहीं, अनेकों पुरुष भी इस कार्य को करने लगे हैं। सबसे बड़ी बात है कि उन्हें कहीं नहीं जाना, घर में रहते हुए ही काम मिल जाता है। घर-परिवार, बाल-बच्चों को संभालते हुए, खेती आदि या नौकरी पूरी करने के बाद दिन में-रात में सखी-साथियों के साथ बातचीत करते हुए भी हाथों से यह कार्य चालू रख सकते हैं।


चार वर्षो के छोटे अंतराल में ही इस कार्य ने अच्छी गति पकड़ ली है और केवल देश में ही नहीं, विदेशों में भी यह सामग्री बहुत पसंद की जा रही है। रात-दिन एक करते हुए इस प्रकल्प को उंचाईयों तक पहुंचाने में सेवारत महिला समिति की बहनें भी परम आनंद का अनुभव करती हैं, जब दुःख से पीड़ित वनवासी महिलाओं के चेहरों पर मुस्कुराहटें झलकती हैं, उनके स्वाभिमान से उन्नत मस्तक देखती हैं और स्वावलंबन से परिपूरति मेहनतकश कर बहनों को प्रसन्न देखती हैं तो उनको भी अपने जीवन की सार्थकता लगती है, परम आनंद की अनुभूति होती है।

द्वारा
(डाॅ. राधिका लढा)
कार्यकारी अध्यक्ष
राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद्

 

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