कर्नाटक के मैसूर, चामराजनगर एवं कुर्ग जिले में ‘जेनु कुरबा’ जनजाति समाज रहता है। जेनु शब्द का कन्नड़ भाषा में अर्थ है शहद। यह समाज पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र के नीलगिरी पर्वतों के घने वनों में शहद संग्रह का काम करते हैं। जेनु कुरबा पुरुष हाथी को नियंत्रित करनेवाले बहुत प्रसिद्ध माहूत थे। प्राचीन काल में युद्ध में यह लोग वीर माहूत मानें जाते थे। जंगलों से जीवनयापन की आवश्यकता के लिए बडे पेड काटते थे एवं हाथियों के द्वारा उसे ढुलवाते थे। वनों पर आश्रित यह समाज प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया था, इसलिए भारत सरकार ने इसे अति पिछडी जनजातियों के श्रेणी में (Particularly Vulnerable Tribal Group] PVTG) रखा। इनकी जनसंख्या लगभग 40 हजार के आसपास है।
हम सिगुरू हाडी (गाँव) में प्रकाश जी के घर गए थे। सरकारी योजना से घर बनाए है। जब हमने पूछा आप का बडा त्योहार कौनसा है तब उन्होंने बताया ‘युगादी’ याने वर्ष का प्रथम दिन अर्थात् वर्ष प्रतिपदा (चैत्र प्रतिपदा) है। गाँव के पास के जंगल में मारम्मा देवी का पूजा का स्थान है। वहाँ जाकर पूजा करते है। दिवाली का पर्व भी हर्ष उल्लास के साथ मनाते है।
उदबुर हाडी में वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा सिलाई प्रशिक्षण चल रहा है। 30 युवतियां रोज तीन घंटे सीखने आतीं है। सिलाई प्रशिक्षण की शुरुआत भारत माता के सामने दीप जला कर एवं प्रार्थना से होता है। साथ साथ देशभक्ति गीत भी सिखाएं जा रहे हैं। सिलाई सीखने का काम श्रीमती चिनम्मा मनोभाव से करतीं हैं। युवतियों को गपशप के दौर में पूछा सिलाई सीख कर क्या करेंगे? सभी ने एक स्वर में बताया मशीन लेकर काम करेंगे। गाँव गाँव में महिलाओं के स्व-सहायता गुट के कार्य को भी बढावा देने की योजना बनाई जा रही है। जिला महिला प्रमुख श्रीमती पुटम्मा काफी सक्रिय है। उनके प्रयासों से 18 ग्राम समितियों का गठन किया है। इन 32 गाँवों में युवतियों द्वारा स्कूल पढनेवाले बच्चों के लिए ‘मनेपाटा केन्द्र’ (कोचिंग सेंटर) चलाए जा रहे हैं।
कार्यकर्ता लोकेश जी ने ग्राम समिति के सहयोग से 500 लोगों के आधार कार्ड, राशन कार्ड एवं वोटर कार्ड बनवाएं, 300 महिलाओं को वृद्धावस्था पेंशन दिलवाना का काम किया है। इस प्रकार जेनु कुरबा जनजाति में विकास का छोटा प्रयास वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा चल रहा है। आइए हम भी ऐसे प्रयासों में सहयोग करें।