शिक्षा सभी बालकों का अधिकार है और सुदूरवर्ती जनजाति क्षेत्रों में तो शिक्षा की सविशेष आवश्यकता है। आज भी विद्यालयों की संख्या कम होने के कारण वनवासी बालकों को दूर दूर तक जाना पडता है। जहाँ विद्यालय है वहाँ उसके गुणवत्ता पर भी प्रश्न चिन्ह है।
सरकार के साथ कई सामाजिक संगठन भी वनवासी क्षेत्र में शिक्षा हेतु विविध रूप में कार्यरत हैं । अपने देश में अंग्रेजों द्वारा प्रस्थापित विचारों के कारण कई व्यक्तियों को ऐसा लगता है कि शिक्षा यह शासन-प्रशासन का विषय है। परन्तु वास्तव में भारतीय विचार कहता है की सबको सुलभता से अच्छी शिक्षा प्राप्त हो यह समाज का दायित्व है।
शिक्षा प्रसार हेतु वनवासी कल्याण आश्रम भी सुदूर जनजाति क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के प्रयास कर रहा है। जैसे..
अनौपचारिक शिक्षा के प्रयास: बालवाड़ी, संस्कार केन्द्र, रात्री पाठशाला, एकल विद्यालय
औपचारिक शिक्षा: प्राथमिक शाला, माध्यमिक शाला
अन्य प्रयास: अभ्यासिका (ट्युशन क्लास), पुस्तकालय, वाचनालय ..इत्यादि
विशेष: एकल विद्यालय यह न केवल किसी वनवासी युवक को परन्तु किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता को प्रेरणा देनेवाला प्रकल्प है। जिस गाँव में एकल विद्यालय चलता है उसी गाँव का कोई युवक विभिन्न कक्षा में अध्ययन कर रहे बालकों को 3-4 घण्टे के लिये किसी घर के आंगन में, किसी मंदिर परिसर में अथवा किसी पेड़ के नीचे प्रतिदिन एकत्रित करता है और शिक्षा के साथ साथ संस्कार सिंचन के भी प्रयास करता है। वर्तमान में ऐेसे २००० से अधिक एकल विद्यालय कल्याण आश्रम द्वारा चल रहे है।
वार्ता